Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / करेंट अफेयर्स

आपराधिक कानून

CrPC की धारा 227 और संबंधित IPC धाराएँ

    «    »
 13-Sep-2023

विष्णु के. बी. बनाम केरल राज्य एवं अन्य

"शिकायतकर्ताओं द्वारा नोटरीकृत शपथ पत्र CrPC की धारा 227 के तहत आरोपी को आरोपमुक्त करने के लिये पर्याप्त नहीं है"।

न्यायमूर्ति एन. नागरेश

स्रोत: केरल उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, केरल उच्च न्यायालय ने विष्णु के. बी. बनाम केरल राज्य और अन्य के मामले में माना कि शिकायतकर्ताओं द्वारा हस्ताक्षरित नोटरीकृत हलफनामे को न्यायालय द्वारा अलग से नहीं लिया जा सकता है ताकि आरोपी को आरोपमुक्त किया जा सके।

पृष्ठभूमि

  • याचिकाकर्ता ने कहा कि इस मामले में कथित अपराध भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की 143, 147, 148, 341, 323 , 324 , 326, 308 और 149 के तहत दंडनीय है।
  • याचिकाकर्ता के अनुसार, उसने कोई अपराध नहीं किया है।
  • शिकायतकर्ताओं को इसकी जानकारी थी और उन्होंने इस तथ्य की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी थी।
  • हालाँकि, जाँच अधिकारियों ने इस पर ध्यान नहीं दिया और मनमाने ढंग से याचिकाकर्ता को आरोपियों की सूची में बनाये रखा।
  • शिकायतकर्ताओं को याचिकाकर्ता को आरोपियों की श्रेणी से मुक्त करने में कोई आपत्ति नहीं है। उन्होंने इसके लिये नोटरीकृत पब्लिक के समक्ष एक हलफनामा दायर किया है।
  • सत्र न्यायालय ने याचिकाकर्ता की आरोपमुक्ति की अर्जी खारिज कर दी।
  • उसी के विरुद्ध वर्तमान पुनरीक्षण याचिका केरल उच्च न्यायालय के समक्ष दायर की गई है।
  • यह याचिका उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी थी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • न्यायमूर्ति एन. नागरेश ने कहा कि आरोपी व्यक्ति को दोषमुक्त करने के लिये शिकायतकर्ताओं द्वारा हस्ताक्षरित नोटरीकृत हलफनामे को आरोपी को दोषमुक्त करने के लिये अलग से नहीं लिया जा सकता है।
  • न्यायालय ने आगे बताया कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 227 के तहत किसी आरोपी को आरोपमुक्त करने के लिये, न्यायालय को यह निर्धारित करना चाहिये कि क्या उनके खिलाफ कार्यवाही करने के लिये पर्याप्त आधार हैं। यदि ऐसे आधार पाए जाते हैं, तो आरोपमुक्त करने का आदेश पारित नहीं किया जा सकता और आरोपी को मुकदमे का सामना करना होगा।

कानूनी प्रावधान

दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 227

  • यह धारा किसी अभियुक्त को आरोपमुक्त करने से संबंधित है। इसमें शामिल है कि-
    • यदि मामले के रिकॉर्ड और उसके साथ प्रस्तुत दस्तावेज़ों पर विचार करने के बाद, और इस संबंध में अभियुक्त तथा अभियोजन पक्ष की दलीलें सुनने के बाद, न्यायाधीश यह मानता है कि अभियुक्त के खिलाफ कार्यवाही करने के लिये पर्याप्त आधार नहीं है, तो वह अभियुक्त को आरोपमुक्त कर देगा और ऐसा करने के लिये उसके कारणों को दर्ज़ किया जाए।
  • इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायालय इस बात से संतुष्ट हो कि आरोपी के खिलाफ लगाये गए आरोप निराधार नहीं हैं और आरोपी के खिलाफ कार्यवाही के लिये कुछ सामग्री है।
  • शरीफ बनाम एनआईए (2019) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 227 के तहत दायर किये गये डिस्चार्ज संबंधी आवेदन की जाँच करते समय, यह उम्मीद की जाती है कि ट्रायल जज को यह निर्धारित करने के लिये अपने न्यायिक मस्तिष्क का उपयोग करना होगा कि ट्रायल के लिये मामला बनाया गया है या नहीं। न्यायालय से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वह रिकॉर्ड पर साक्ष्य एकत्र करके लघु सुनवाई आयोजित करे।

भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC)

  • धारा 143:
    • यह धारा गैर-कानूनी सभा का सदस्य होने पर सजा से संबंधित है।
    • इसमें कहा गया है कि जो कोई भी गैर-कानूनी सभा का सदस्य है, उसे छह महीने तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।
      • गैर-कानूनी सभा को भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 141 के तहत परिभाषित किया गया है।
  • धारा 341:
    • भारतीय दंड संहिता की धारा 341 के अनुसार, जो भी व्यक्ति किसी व्यक्ति को गलत तरीके से रोकता है, तो उसे किसी ऐसी अवधि के लिये साधारण कारावास की सजा, जो एक महीने तक हो सकती है, या पांच सौ रूपए का आर्थिक दंड, या दोनों से दंडित किया जाएगा।
  • धारा 326:
    • इसमें यह कहा गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 326 के अनुसार, धारा 335 द्वारा प्रदान किये गए मामले को छोड़कर जो कोई भी, घोपने, गोली चलाने या काटने के किसी भी साधन के माध्यम से या किसी अपराध के हथियार के रूप में इस्तेमाल किये जाने वाले उपकरण से स्वेच्छापूर्वक ऐसी गंभीर चोट पहुँचाए, जिससे मॄत्यु होना सम्भाव्य है, या फिर आग या किसी भी गरम पदार्थ या विष या संक्षारक पदार्थ या विस्फोटक पदार्थ या किसी भी पदार्थ के माध्यम से जिसका श्वास में जाना, या निगलना, या रक्त में पहुँचना मानव शरीर के लिये घातक है या किसी जानवर के माध्यम से चोट पहुँचाता है, तो उसे आजीवन कारावास या किसी एक अवधि के लिये कारावास (जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है) और साथ ही आर्थिक दंड से दंडित किया जाएगा।
  • धारा 308:
    • यह धारा गैर इरादतन हत्या के प्रयास से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 308 के अनुसार, जो भी कोई इस तरह के इरादे या बोध के साथ ऐसी परिस्थितियों में कोई कार्य करता है, जिससे वह किसी की मृत्यु का कारण बन जाए, तो वह गैर इरादतन हत्या (जो हत्या की श्रेणी मे नही आता) का दोषी होगा, और उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास (जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है) या आर्थिक दंड या दोनों से दण्डित किया जाएगा। यदि इस तरह के कृत्य से किसी व्यक्ति को चोट पहुँचती है, तो अपराधी को किसी एक अवधि के लिये कारावास (जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है) या आर्थिक दंड या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।